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11:23, 22 मई 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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<poem>
घबरा न मेरे दिल तू ग़म से, हालात को रंग बदलने दे
बेफिक्र निभा वादे अपने, दुनिया को हथेली मलने दे।
आवाज़ यही निकली दिल से, फरियाद न होगी क़ातिल से
गर्दन को हवाले रब के कर, बेख़ौफ़ दुधारी चलने दे।
गर आग लगे भी बस्ती में, आये न कमी इस मस्ती में
आबाद रहे दुनिया दिल की, जलता है ज़माना जलने दे।
घर छोड़ वनों में रह लूंगा, ये धूप तपन सब सह लूंगा
सूरज से खुशामद क्या करनी, सूरज को आग उगलने दे।
कहती हैं ये उल्फ़त की रस्में, निकलें न कभी झूठी कसमें
मत चाल बदल अय दिल अपनी, संसार को चाल बदलने दे।
उनको भी दुआएं दे दिल से, जो ताक़ रहे हैं साहिल से
दिखला दे करिश्मा कश्ती का, लहरों को ख़ूब मचलने दे।
क़ासिद ने खबर दी है आकर, रुख़सार पे ज़ुल्फें लहराकर
वो चांद गली से गुज़रेगा, ये शाम ज़रा सी ढलने दे।
दे बख़्श नज़ारा आंखों को, हो दीद ख़ुदारा आंखों को
जब तक ये खिलौना चालू है, 'विश्वास' तमाशा चलने दे।
</poem>