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{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार नयन
|अनुवादक=
|संग्रह=दयारे हयात में / कुमार नयन
}}
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<poem>
तू कैसे क्यों हारा सोच
तब फिर जीत का नारा सोच।

मत दे औरों पर इल्ज़ाम।
तू कितना नाकारा सोच।

ग़फ़लत करने वाला कौन
सोच ज़रा दोबारा सोच।

कुछ भी करने से पहले
क्या था सोच हमारा सोच।

बस इतना है मेरे पास
मीठी बोली खारा सोच।

सौ खुशियां दे देता है
इक पागल आवारा सोच।

काश कि दोनों मिल जाते
मेर्क सोच तुम्हारा सोच।

</poem>
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