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01:52, 14 जून 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
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<poem>ख़्वाब जब टूट के बिखराव में आ जाते हैं
दुश्मनों की तरह बर्ताव में आ जाते हैं
तूने भी वादा ख़िलाफ़ी की क़सम खाई है
हम भी हर बार तेरे दाव में आ जाते हैं
शाम होते ही तेरे साथ गुज़ारे लम्हात
ताज़गी ले के मेरे घाव में आ जाते हैं
तू कभी मोल हमारा नहीं दे पाएगा
ले तेरे पास तेरे भाव में आ जाते हैं
मुझको मालूम है रुमाल बांथ के मुंह पर
कुछ मेरे दोस्त भी पथराव में आ जाते हैं
</poem>