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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
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<poem>क़बायें तो बदन पर क़ीमती हैं
मगर क्या दिल भी अंदर क़ीमती हैं

तो कैसे हार को तस्लीम कर लें
अगर दस्तार हैं सर क़ीमती हैं

कई अपने भी शामिल भीड़ में थे
उठा लीजे ये पत्थर क़ीमती हैं

अना, ख़ुद्दारियां, ईमान, इज़्ज़त
बचा के रख ये ज़ेवर क़ीमती हैं

करम फ़रमाईयां हैं दोस्तों की
ये आंसू दीदा ए तर क़ीमती हैं
</poem>