1,270 bytes added,
01:46, 15 जून 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>आज खुली जब गुजरे वक़्तों की अलमारी बरसों बाद
शोलों में तब्दील हुई फिर इक चिंगारी बरसों बाद
जाने क्या सीने के अंदर बरसों पहले टूटा था
ख़ामोशी को चीर के निकली चींख हमारी बरसों बाद
हम लोगों के पाओं से अब के इतने छाले फूटे हैं
ख़ुश्क ज़मीनों से निकलेगी इक पिचकारी बरसों बाद
पत्थराई आंखों पर लेकिन दस्तक दे कर लौट गई
हम से मिलने आई थी कल नींद हमारी बरसों बाद
वक़्ते रुख़सत झूटे आंसू ये भी कोई साज़िश है
रोने वालों को याद आई रिश्ते दारी बरसों बाद
</poem>