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|रचनाकार=जंगवीर सिंह 'राकेश'
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<poem>
हम भुला दें तुम्हें तो क्या होगा?
'हां' ये सच-मुच बहुत बुरा होगा;

ज़िन्दगी लुत्फ़ है उठाओ 'यार'
मौत का भी अलग मज़ा होगा;

ज़र्द पत्ते लिपट के रोए मुझे;
सोचो क्या वाक़िआ हुआ होगा?

जितने भी यार थे फ़रेबी थे;
और इस से बुरा भी क्या होगा;

अब चलो ये कहानी ख़त्म करें
जो भी अब होगा 'हां' नया होगा

</poem>