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{{KKRachna
|रचनाकार=जंगवीर सिंह 'राकेश'
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<poem>
आख़िरी दुःख है ज़िन्दगी का दुःख;
ज़िन्दगी या'नी बेबसी का दुःख;

हम न रोयें तो और रोए कौन;
शाख़ से टूटी हर कली का दुःख;

और बहुत दुःख हैं ज़िन्दगी में दोस्त;
'तू' नहीं मेरी ज़िन्दगी का दुःख;

मैं किसी पुल-सा देखता हूँ महज़;
एक बहती हुई नदी का दुःख;

कुछ चराग़ों ने बाँट रक्खा है;
दुनिया की सारी तीरगी का दुःख;

एक मुद्दत से रो नहीं पाया
आज रोऊँगा मैं सभी का दुःख;

देखिए मैं जो हूँ बहुत ख़ुश हूँ;
मुझको मालूम है ख़ुशी का दुःख;

मैं इधर तड़पूं वो उधर तड़पे;
'वीर' ये ही है दिल्लगी का दुःख;

</poem>