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11:05, 27 जून 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= कुमार मुकुल
|संग्रह=
}}
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<poem>
तेरे बिना
यह जीवन
अमर हुआ जा रहा
सो लौट आना
देर-सबेर...।
तुम्हारी याद
बिल्कुल पागल है
बारहा सांकलें बजाती है।
हुक्मरां हैं हम
शर्म-ओ-हया की
औकात क्या -
जो पास आए।
हुक्मरां हुक्मरां से
लड़ते हैं
दो दुनिया तबाह होती है
शेष दो हुक्मरां ही बचते हैं।
हुक्मरां की
एक भौंह गीली है
कहीं कोई आशियां
जला होगा।
</poem>