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माँ शारदे / कविता भट्ट

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खोल किवाड़ हँसी के घरों में
मात बिखेर हरियाली बंजरों में
बसंत को तेरा उपकार लिखूँगी
'''माँ शारदे तेरा प्यार लिखूँगी !'''
 
पहाड़ी पगडण्डी पर घोर अँधेरे
गाँव के जीवन में कर दे सवेरे
गीतों में इनका शृंगार लिखूँगी
माँ शारदे तेरा प्यार लिखूँगी !
 
सुन्दर शब्दों के फूल मैं चुनकर
मनहर भावों के धागे में बुनकर
नदी-वृक्ष-लता-शैल- शृंगार लिखूँगी
माँ शारदे तेरा प्यार लिखूँगी !
 
जीवन से ताप-संताप मिटा माँ
आशा-अनुराग-आलाप सुना माँ
निश्छल मन के उद्गार लिखूँगी
माँ शारदे तेरा प्यार लिखूँगी !
 
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