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सात समंदर / विनय मिश्र

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|रचनाकार=विनय मिश्र
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लगा छलांगें
पार हो गए सात समंदर
शिक्षा के बेढंगेपन ने ऐसा पीसा गले में टाई होठों पर हनुमान चलीसा किसी युक्ति से जो जीता है वही सिकंदर
अपराधी पहुंचे संसद में अच्छे खासे आजादी का तांडव देखा लाल किले से गए काम से गांधीजी के तीनों बंदर
धन बल से अब कद जीवन का लगा है नपने दूर-दूर तक जीभ निकाले फिरते सपने यही प्रगति है बाहर हंँसते रोते भीतर
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