एक दिन शुमार मे जो इकसठ थे, दो हफ़्तों में चालीस से नीचे आ गए —
ऐसा था डोगरा राज का जनसंख्या प्रबन्धन ।
मरने वालों की तादाद — दो लाख सैंतीस हज़ार, उजड़े और लापता — छह लाख ।लाख।
तुम्हें मालूम है कौन था हरि सिंह
और वो मेहर चन्द, प्रेम नाथ, यादविन्दर सिंह…?
तो उसे रोककर कहना सिगरेट बुझा दे और
उसके हाथ में थमा देना साफ़ पानी का एक गिलास ।
24.4.2018
नोट :
1. आसिफ़ा जम्मू-कश्मीर के पशुपालक बाकरवाल (गुज्जर) समुदाय की आठ वर्षीय बच्ची थी। 10 जनवरी 2018 के दिन कठुआ ज़िले की हीरानगर तहसील के कसाना गाँव के पास जंगल के किनारे एक चरागाह में अपने घोड़ों को चराने गई, फिर वापस नहीं आई। कुछ दिन बाद उसका शव जंगल में बरामद हुआ । इस मामले में आठ लोगों को गिरफ़्तार किया गया । जाँच के नतीजे बताते हैं कि अपहरणकर्ताओं ने सूनी जगह पर बने एक मन्दिर के गर्भगृह में सात दिन तक उसे बेहोश रखकर उसके साथ बलात्कार किया, फिर उसका गला घोंटकर पत्थर से सर कुचल दिया और उसकी लाश को फेंक दिया। मुख्य अपराधियों में मन्दिर का पुजारी (अवकाशप्राप्त सरकारी मुलाज़िम), कई पुलिस कर्मचारी और एक नाबालिग लड़का भी शामिल हैं। अप्रैल में जब पुलिस का जाँच दल अदालत में आरोप-पत्र दाखिल कराने पहुँचा तो कठुआ के वक़ीलों नें जबरन उनका रास्ता रोका। जम्मू इलाक़े के अनेक हिन्दुत्ववादी संगठनों ने आरोपियों के समर्थम में आन्दोलन और प्रदर्शन शुरू कर दिए. कश्मीरी पण्डित समुदाय के अति-दक्षिणपन्थी संगठन पनून कश्मीर के नेताओं का रुख़ भी बलात्कारियों के समर्थन का था। राज्य की साझा सरकार में शामिल भारतीय जनता पार्टी के दो मन्त्री खुलेआम आरोपियों के समर्थन में उतर आए । इनमें एक मन्त्री वही था जिसने दो साल पहले खेती-बाड़ी की किसी समस्या को लेकर प्रतिनिधिमण्डल में आए गुज्जर सदस्यों को सम्बोधित करके कहा था, “गुज्जरो, 1947 को भूल गए क्या ?” इस तरह वह बाकलवाल समुदाय को शेष भारत में अब तक अज्ञात उस हत्याकाण्ड की याद दिला रहा था जिसके तहत डोगरा राजा हरि सिंह की फ़ौजों ने हिन्दू साम्प्रदायिक दस्तों के साथ मिलकर जम्मू डिवीज़न में क़रीब दो लाख सैंतीस हज़ार मुसलमानों को मौत के घाट उतार दिया था, और कुल मिलाकर छह लाख लोगों को रियासत से बाहर धकेल दिया था । जम्मू डिवीज़न आबादी के हिसाब से उस समय मुस्लिम बहुल था। इस जातीय सफ़ाए के बाद वहाँ मुस्लिम जनसंख्या 61 प्रतिशत से गिर कर 38 प्रतिशत रह गई। वैसी ही हत्यारी शक्तियाँ आज आसिफ़ा के क़ातिलों के पक्ष में खड़ी हैं.
2. इस कविता में इतिहास अौर वर्तमान की बहुत सी हस्तियों के नाम अाए हैं। अधिकांश को उनके पहले नाम से याद किया गया है। यहाँ उनके पूरे नाम क्रमानुसार दिये जा रहे हैं.
आसिफ़ा, चुन्नो (काल्पनिक), नवाब (काल्पनिक), मीर तक़ी ‘मीर’, मिर्ज़ा मुहम्मद रफ़ी ‘सौदा’, नज़ीर अकबराबादी, मीर बब्बर अली अनीस, मिर्ज़ा असदुल्लाह ख़ाँ ‘ग़ालिब’, अन्तोन चेख़व, ख़्वाजा अल्ताफ़ हुसैन ‘हाली’, नाज़िम हिकमत, पाब्लो नेरूदा, पाब्लो पिकासो, फ़ेदेरीको गार्सीया लोर्का, बेर्तोल्त ब्रेख़्त, रवीन्द्रनाथ टैगोर, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, गजानन माधव मुक्तिबोध, मक़बूल फ़िदा हुसैन, (उस्ताद) अमीर ख़ाँ, महमूद दरवीश, थिओ अंजीलोपुलोस, अब्बास कियारुस्तमी, सेसर वाय्येख़ो, फ़्रांत्स काफ़्का, पाउल सेलान, सआदत हसन मन्टो, रघुवीर सहाय, तदेऊश रूज़ेविच, आन्ना अख़्मातवा, रोज़ा लग्ज़ेमबर्ग, अनीस क़िदवाई, मरीना त्स्वेतायेवा, ज़ोहराबाई आगरेवाली, विस्वावा शिम्बोर्स्का, बेगम अख़्तर, बालासरस्वती, कमला दास सुरैया, मीना कुमारी, गीता दत्त, नरगिस, स्मिता पाटील, हरि सिंह (डोगरा राजा), मेहर चन्द महाजन, प्रेमनाथ डोगरा, यादविन्दर सिंह (पटियाला का राजा), कर्ण सिंह, महबूबा मुफ़्ती, अरिजीत सेन.
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