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57भोर में भानुपुर्जे -पुर्जे करता,लिखी जो पातीं।58तुम जोड़नाटूटे हुए आखरपढ़ो सन्देसा।59चीख थी मेरीपहचान न पायागूँजा था वन।60लिखो आग सेअनुरागी आखरखुली हथेली।61था दर्द किसीभीगे नैन बावरेदुत्कार मिली।62भरी भीड़ हैरक्त-पिपासु दिखे,भोले चेहरे।63बूँद टपकीनभ या नयन सेकिसने जाना !64दिन डूबा हैबन्द कर लो द्वारबिदा दो अब !65'''हम पाहुने'''कुछ दिन के ही थेचलना होगा !66टूटे हैं रोज़जुड़ने में निकलीपूरी ज़िन्दगी।
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