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131
कभी न समझे आज तक ,हम विधना का खेल।
मन में जिनके पाप है, उन्हें लगा यह रोग।
133
सारे सुख मन -प्राण से , किए तुम्हारे नाम । नाम। फिर भी रुक पाता नहीं, जीवन का संग्राम ॥ संग्राम॥
134
रिश्ते कुहरे हो गए, रस्ते हुए कुरूप।