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12:00, 23 जुलाई 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मनोज झा
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<poem>
होली मन का एक उमंग है,
मस्त जवानी का तरंग है,
होती आँखें चार यार से,
यही गुलाबी लाल रंग है।
थकी है सजनी इन्तजार कर,
नव यौवन पर वह शृंगार कर,
असमंजस इतउत विचार कर
तड़पत लख 'सूनी पलंग है'।
होली मन का...
कैसे मिलती थी चोरी चोरी,
आलिंगन चुंबन औ ठिठोरी,
सोच सोच शरमाये गोरी,
मन पतझड़ तन पर बसंत है।
होली मन का...
ऐनक से सौ-सौ सवाल कर,
गुजरे कल पर वह मलाल कर,
उभरे यौवन पर बाल डालकर,
करती उससे हास्य व्यंग्य है।
होली मन का ...
</poem>