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अबला / मनोज झा

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<poem>
कब तक कहलाओगी अबला?
संघर्ष करो बनकर प्रबला।

है युग पुकारता तुझे-मौन,
घूँघट मेँ अबतक रही गौण।
बतला युग की जननी है कौन?
अपनी महिमा तो जान भला।
कब तक कहलाओगी अबला?

बच्चा जवान झुर्रीकाया,
तू देती रही सबको छाया,
है कौन जिसे न अपनाया
चल बन सशक्त जग को बतला-
कब तक कहलाओगी अबला।


परमार्थ भाव तू शांति हो,
इतिहास देख तू क्राँति हो,
भव भ्रम है तू एक भ्रांति हो,
तू काली हो, तुम ही कला।
कब तक कहलाओगी अबला?

भगिनी जननी तनुजा जाया,
है सकल सृष्टि तेरी माया।
साक्षात प्रेमतरु की छाया-
बतला कैसे तू है निबला?
कब तक कहलाओगी अबला?

कब तक यूँ करोगी आर्त्तनाद?
ऐ द्रौपदी मत लुटने दो लाज।
चल उठो करो अब सिँहनाद।
उस कृष्ण की आशा छोड़ भला।
कब तक कहलाओगी अबला?
</poem>
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