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09:01, 7 अगस्त 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नवीन रांगियाल
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
यहाँ
इस तरफ़
इस
देहरी पर
धूसर भूरी भभूत
धीमी- धीमी लौ
सांस से उड़ते धुएं
और
बुदबुदाती हुई
असंख्य प्रार्थनाओं से परे
इस
दुनिया के
ढेरों इल्ज़ामों से
दूर कहीं
वहाँ
ऊपर
इस दुनिया का
ईश्वर कितना एकाकी
</poem>