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तोड़ कर सब वर्जनाएँ / मानोशी

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<poem>तोड़ कर सब वर्जनाएँ
स्वप्न सारे जीत लेंगे
एक दिन हम ।।

राह में जो धूल की
आँधी उड़ी,
क्या पता क्यों
समय की धारा मुड़ी,
मंज़िलों के रास्ते भी
थे ख़फ़ा,
साथ में फिर और
कठिनाई जुड़ी,
पर क्षितिज के पार खिलती
रोशनी को
भी वरेंगे एक दिन हम ।।

देखते ही देखते
युग बीतता,
बूँद-बूँदों समय का घट
रीतता,
काट कर सब बंध
सारी कामना,
लक्ष्य हो ध्रुव जब
तभी मन जीतता,
त्याग कर झूठे सहारे,
आवरण तम का हरेंगे
एक दिन हम ।।

ज़िंदगी की राह में
ठोकर मिले,
जो रहे मन में वही
मन को छिले,
लड़खड़ाए थे क़दम
इक पल मगर,
फिर चले हँस कर
मिटा कर हर गिले,
रात कितनी हो अंधेरी
सूर्य रथ पर भी चढ़ेंगे
एक दिन हम ।।</poem>