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03:16, 26 अगस्त 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मानोशी
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|संग्रह=
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<poem>सनी हुई मैं प्रेम रंग में
गाढ़ा प्रेम गुलाल।।
रंग उँडेला तन-मन भीगा
लाज समाज भुलाया,
सुध-बुध खोयी मैं मय पी कर
पी संग प्रेम रचाया,
निठुर साजना झूठे, पर मैं
हँसती बंध के जाल ।।
सराबोर हर अंग झुलसता
मारी वो पिचकारी,
प्रीत संग में भंग मिली जो
ऐसी चढ़ी ख़ुमारी,
पूरी रतियाँ जाग बितायी
निंदिया से बेहाल।।
कल की स्मृतियाँ सपनों में अब
खेले आँख मिचौली,
सूनी गलियाँ फीका फागुन
कैसी बेरँग होली,
पी के बिन मैं हुई अधूरी
जैसे सुर बिन ताल। ।</poem>