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उड़ान / मानोशी

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<poem>
उड़ान पाने से पहले
मेरा आसमान बहुत ऊँचा था,
उस पर सवारी करने के ख़्वाब
के नीच दब जाता मेरा संसार,
शाख़ से शाख़ चढ़ते हुए
कई बार पैर फिसला,
हाथ छिले, पड़ गई गाँठ बालों में,
सूख गया कुछ ख़ून,
और तब अचानक आसमान नीचा हो गया,
एक छलाँग भर दूर,
मेरे पंख बने तुम....
</poem>