1,191 bytes added,
19:57, 8 सितम्बर 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रणव मिश्र 'तेजस'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
रफ़्ता-रफ़्ता चीख़ना, आराम हो जाने के बाद
डूब जाना फिर निकलना शाम हो जाने के बाद
देर तक ख़ामोशियो से गुफ़्तगू करना कभी
देर तक सुनना उन्हें हर काम हो जाने के बाद
बस्तियों से दूर जाना ख़्वाहिशों को पार कर
जंगलों में नाचना गुमनाम हो जाने के बाद
आसमाँ वालों से अपनी रंजिशों को भूलना
रूह के बाज़ार में नीलाम हो जाने के बाद
रब्त के पहलू समझना और रोना सारी रात
बस यही कुछ काम हैं नाकाम हो जाने के बाद
</poem>