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20:00, 8 सितम्बर 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=प्रणव मिश्र 'तेजस'
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|संग्रह=
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<poem>
वो सब क़िस्से वो सब फ़रियाद भी देखा करेंगे
तुम्हारा ख़त तुम्हारे बाद भी देखा करेंगे
चुरा रक्खेंगे कुछ लम्हें किसी सन्दूक में हम
ज़रा ख़ुद को कभी आबाद भी देखा करेंगे
ख़ुशी होगी कभी जब ट्रेन या बस में दिखोगी
बिछड़ कर तुमको हम आज़ाद भी देखा करेंगे
तुम्हारे दिल से होंठो तक अभी दुनिया है मेरी
हुए पत्थर तो हर उफ़्ताद भी देखा करेंगे
ये जो कहती हो तुम फ़रहाद ऐसा मीर वैसा
कल इनके हिज्र की बुनियाद भी देखा करेंगे
</poem>