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राह देखते हम / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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बहा मन्द पवन
सिंचित तन-मन।
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नीलम नभ
धुँआँ पीकर मरा
साँस-साँस अटकी
हम न जागे
हरित वसुंधरा
द्रौपदी बना लूटी।
</poem>
वीरबाला
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