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05:36, 18 सितम्बर 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कुबेरनाथ राय
|अनुवादक=
|संग्रह=कंथा-मणि / कुबेरनाथ राय
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<poem>
भाइयों, वहाँ नहीं कंधे पर जुए हैं
न ताँबे के कड़े हैं न लोहे की हँसली है
न कमरबंधी शृंखला है न घाव है न घट्ठे हैं
भाइयों, वहाँ कोई ऐसा श्रृंगार नहीं।
भाइयों, वहाँ नहीं कोंचते पैने की नोक हैं
न सौ-सौ बेंतें हैं, न सपासप कोड़े हैं
न भूख ही अंतड़ियाँ चबाती हैं वहाँ
भाइयों, वहाँ कोई ऐसा दुलार नहीं।
भाइयों, वहाँ पर तो मौज है डेमोक्रेसी है
अह, रोटी के साथ नमक भी है, ईसामसीह भी है
और सबसे बढ़कर
नरम मन है कोंवर छोकरियाँ हैं, सांवले इशारे हैं
भाइयों, वहाँ कोई सरकार नहीं
भाइयों, वहाँ नहीं कंधे पर जुए हैं।
</poem>