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14:25, 29 सितम्बर 2019 {{KKRachna
|रचनाकार=कविता भट्ट
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|संग्रह=
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<poem>
एक शाम;
आँखें नम
दिल की ज़मीं भीगी हुई,
महसूस की मेरे ग़मों की गन्ध
और उसने बोया- प्रेमबीज।
प्रतिदिन स्वप्नजल से सींचकर,
चुम्बनों से उर्वरा करता रहा
बिन अपेक्षा ही मरुधरा को।
आज मेरी आँखों में-
वही शख़्स खोजता है-
प्रेम का वटवृक्ष, हाँ।
'''ऊसरों में बीज बोना गुनाह है क्या ?'''
'''हाशिए पर प्रेम लिखना बुरा है क्या?'''
<poem>