Changes

{{KKCatGhazal}}
<poem>
तिरी आँखों का पानी मर गया है।
तभी तू गंद फैला कर गया है।
नहीं है ज़िन्दगी में कुछ रवानी,
जुनूं पंछी को बे पर कर गया है।
 
सफ़र जोखिम भरा लगता है हमको,
कि जब से रूठ कर रहबर गया है।
 
निशाने पर हैं सारे ही उसूल अब,
ज़माना बेहिसों से डर गया है।
 
ग़ज़ब की वहशतें, चर्चे बला के,
जहाँ से ‘नूर’ का जी भर गया है।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits