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पात झरे, फिर-फिर होंगे हरे / ठाकुरप्रसाद सिंह
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19:38, 20 नवम्बर 2019
कोयलें उदास मगर फिर-फिर वे गाएँगी
नए-नए चिन्हों से राहें भर
जाएंगी
जाएँगी
खुलने दो कलियों की ठिठुरी ये मुट्ठियाँ
माथे पर नई-नई सुबहें मुस्काएँगी
अनिल जनविजय
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