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12:17, 29 नवम्बर 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=राजेन्द्र देथा
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<poem>
उधर मुंबई में
एक नामी,परनामी कवियित्री
वातानुकूलित कक्ष में
रचती है एक कविता संग्रह
"मैं कृषक" शीर्षक से
इधर परलीका में
एक किसान
उच्च शीतित मौसम में
खेत में पाणी लगाता हुआ
लिखता है कविता संग्रह
"मैं किरषा" शीर्षक से
उधर कवयित्री साहिबा
करवाती है अपनी किताब पर
चर्चा दिल्ली के कनाट पैलैस पर
बने किसी हेरिटेज होटल में
"मैं कृषक" किताब पर चर्चा
नाम का कार्यक्रम
और आमंत्रित करती है
कुछ वरिष्ठ दाढ़ी वाले कवियों को
कुछ मटमेले कुर्ते वालो को!
इधर किसान चर्चा
करने के के लिए आमंत्रित करता है
गांव की डीग्गियों पर
अपने किसान साथियों को!
और इधर पाठक
कृषक और किसान में
अन्तर तक नहीं ढूंढ पा रहा!
वो पूछने पर हर बार यही कहता
"एक ही तो बात है"
</poem>
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