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मां के लिए / राजेन्द्र देथा

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<poem>
जब कभी कर बैठता हूँ
बड़ी गलती, हाँ बहुत बड़ी
माँ क्रोध में आकर कह देती है-

"मुझे अपना मुँह मत दिखाना
चला जा निभागे यहां से"

मैं अबोध बालक की भांति
निकल जाता हूँ मित्र मनीष के यहां
अनपढ मां,भाई से देर रात तक
मेरी पुरानी डायरी में
लिखे मित्रों के नम्बर
मिलाने को कहती है
मनीष के फोन की घंटी बजती है
मां की आवाज सुनाई देती है
"राजेन्द्र आया?

मैं किस मुँह से
घर जाऊँ!
आज कुछ डायरी के पन्ने!
</poem>
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