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12:28, 29 नवम्बर 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राजेन्द्र देथा
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
पिछले कुछ वर्षों से
ह्रदय के बाएं निलय वाले
दरवाजे की दायीं तरफ
सुरक्षित सहेज रखे है कुछ
"अज्ञात आखर"
लंबे समय के लिए,नहीं चाहता मैं कि
ये अज्ञात आखर ज्ञात हो जाए समय से पहले
और क्षय हो जाए इन समस्त का क्षण भर में
इनदिनों जीवन के जजमानों का आसन इन्हीं के पास है!
</poem>
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