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12:29, 29 नवम्बर 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=राजेन्द्र देथा
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<poem>
मैंने कोई आदमी नहीं मारा
मैं शौकत को मेरा बहुत
प्यारा दोस्त मानता हूं,
मैंने भगवा हरा भी नहीं किया,
दुनिया को भख लेती है जो
मैं उस लिंचिंग की भी करता रहा भर्त्सना
मैंने पहलू के समर्थन में बयान नहीं दिए
पर मैं पहलू के समर्थन में हूँ
मैंने कोई गाय की हत्या नहीं की
कभी सूअर के लाठी तक नहीं मारी
"उक्त हिसाब से मैं प्रगतिशील था"
पर मुझे पता है
जब तक मैं
तमाम संघों,और संस्थानों में अपनी
सदस्यता दर्ज नहीं कराऊंगा
मुझे तमाम छद्म वादी लोग
फासिस्ट समझेंगे
प्रिय छद्मियों
वामपंथ,दामपंथ
धींगडपंथ,पूंछडपंथ
राष्ट्रपंथ,जनवादी पंथ
से हटकर देखिए-
एक "मिनखपंथ" भी होता है
जो सदैव तलाशता हूं मैं तुममे
लेकिन तुम्हें लेनिन याद आते है
गांधी नहीं
तुम्हें विदेशी प्रगतिशील याद आते है
भारतेंदु नहीं
अत: शायद मैं इसलिए भी कुछ नहीं हूं
क्यूंकि मैंने प्रगतिशीलता की सदस्यता नहीं ली!
यह आकाश खुला है
तुम्हें तुम्हारी खुद की कसम
नफरत न करो प्यारे
तुम प्रागैतिहासिक नहीं
प्रगतिशील हो!
</poem>