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राह देखते हम / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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11:08, 2 दिसम्बर 2019
कटता जाए शीश
यहाँ हज़ारों बार,
आहें
भी
नहीं
निकली मुँह से भी
चूकते नहीं वार।
वीरबाला
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