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जंगल क़ैद / कुमार विकल

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आख़िर वे जंगल को चले गयेगए
और अभी तक लौट कर नहीं आए
मगर जंगल जब जेल में बदल जाता है
तो सवारों की तरह घोड़े भी नहीम नहीं लौटते
केवल कुछ टापों की आवाज़ें लौट आती हैं .हैं।
सुनो, ज़रा सुनो
अँधेरे अंधेरे में टापों की आवाज़ों में सुनो
कोई कविता गुनगुना रहा है
नहीं, कोई कविता सिसक रहा है.है।
यह सिसकी आवाज़ में है
यह सिसकी एक क़द्दावर स्वस्थ आदमी के शरीर की
नींद के लिए छोटी—सी प्रार्थना है.है।
किंतु जंगलों में प्रार्थनाएँ कौन सुनता है
सिसकियाँ बन लौट आती हैं
हम उन सिसकियों से भाग कर कहाँ जाएँ.जाएँ।
अपने घरों की खिड़कियाँ बंद कर लें
अपनी पत्नी और बच्चों के साथ
सुरक्षित बिस्तरों में दुबक जाएँ !
हम उनके लिए कुछ नहीं कर सकते
केवल तकियों के नीचे मुँह रखकर सो सकते हैं.हैं।
आख़िर हम उन्हें सिवान पर क्यों छोड़ आए
अकेले घरों
को लौट आए.?
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