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यथास्थान / कीर्ति चौधरी
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04:50, 26 अगस्त 2008
मेरे मन में सुलगने दो।
प्यास :
अौर
और
कहाँ
इन्हीं आँखों में जगने दो।
बिखरी-अधूरी अभिव्यक्तियाँ
समेटो,
लाअो
लाओ
सबको छिपा दूँ
कोई आ जाए !
छि:,इतना अस्तव्यस्त
सबको दिखा दूँ !
यहाँ आए
कमरे का दुर्वह
अँधियारा
अंधियारा
तो भागे
फिर चाहे इन प्राणों में
अनिल जनविजय
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