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04:57, 8 दिसम्बर 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=पूनम चंद गोदारा
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<poem>
म्है चिण्यौ हो
मैणत'र पसीनै स्यूं
म्हारौ घर
चेप्या काचा पाका
ईण्ट'र भाटा
अर
करी सिर माथै छिंया
अबकाळै
जाणै किणसूं मिळी
इन्दर री आँख
बो बरस्यौ
पूरौ नौ घण पाणी
घर फाटग्यौ
फिटगड़ी री तर्-या
डाळडाळ
जाणै
चालगी तिरेड़ा म्हारी
छाती में
अर आयग्यौ
आखै गांव रौ पाणी
म्हारी पांती में
</poem>
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