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04:58, 8 दिसम्बर 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=पूनम चंद गोदारा
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दर्द रौ दरियाव
जद लैवे हिलोरा
हिरदै री पाळा
तिड़क पड़ै रावां-रांव
बै ज्यावै
कई सुपना रा घर
आँख रै पाणी सागै
घुळ-घुळ
बैली !
दर्द नै जीवणो
दर्द नै ओढ़णो-बिछाणो
जुगां स्यूं रैयो है
म्हारै हिस्से
</poem>
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