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06:44, 9 दिसम्बर 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=एस. मनोज
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<poem>
कोशी कमला नदी का देखो
जाल यहां है फैला सा
रेणु की धरती को देखो
आँचल इसका मैला सा
बाढ़ की विपदा यहां है आती
जीवन सबका नरक बनाती
जल ही जीवन नहीं है भैया
जब उफनाती कोशी मैया
जल ही जल चहुँओर है रहता
घर आंगन सब जल में बहता
फिर होता राहत का खेल
लूटपाट का रेलम पेल
दिल्ली पटना भाग्य विधाता
जय हो सेवक जय हो दाता।
</poem>