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<poem>
घर में, ऽाने खाने को दाने नहींपिफर फिर भी
अतिथियों के आ जाने पर
कर्ज लेकर
कराना पड़ता है
उन्हें लजीज जलपान
आऽिर आखिर क्या कहेंगे
दूर से आये हुए मेहमान
पहनने के लिए घर में
एक भी नहीं है चिथड़ा
पिफर फिर भी
पड़ोसियों से लेकर, देना पड़ता है
उन्हें अंग वस्त्रा वस्त्र का सामानआऽिर आखिर कैसे कहलाऐंगेबहुत बड़ा ध्नवानधनवान
रहने के लिए, न है टूटी मड़ैया
पिफर फिर भी
भाड़े पर इंतजाम करते हैं
उनके लिए मकान आलीशान
 आऽिर आखिर क्या कहेंगे
नव आगन्तुक मेहमान
जेब में नहीं रहती
एक भी पफूटी फूटी कौड़ीपिफर फिर भी
शहर के लोगों के बीच
चंदा देने में हैं हम बदनाम
आऽिर आखिर क्या कहेंगे
आशा लेकर आये हुए इंसान
पीते नहीं बीड़ी, ऽाते खाते नहीं ऽैनीखैनीपिफर फिर भी
दारु पीने के लिए
साथियों को देते रहते पैगाम
आऽिर आखिर कैसे मिलेगा
लोगों से सम्मान
मिलती नहीं पफुर्सतफुर्सत
सांस भी लेने की
पिफर फिर भी
आगन्तुकों के आने पर
बातों में हो जाती सुबह से शाम
नहीं तो क्या कहेंगे
गप्प लड़ाते हुए श्री मानश्रीमानकाम की अध्किता अधिकता में
दिल नहीं करता
औरों का मुँह भी देऽूँदेखूँ पिफर फिर भी
लोगों के आ जाने पर
लाते हैं चेहरे पर
व्यापारिक मुस्कान
आऽिर आखिर क्या कहेंगे
सामने बैठे इन्सान
मित्रों! दुनिया कुछ कहे
पिफर फिर भी
करो अपने मन मुताबिक काम
नहीं तो
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