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मास्टर नेकीराम / परिचय

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प्रसिद्ध विद्वान श्री रत्न कुमार सांभरिया व डॉ. शिवताज सिंह के अनुसार मास्टर नेकीराम ने अपनी सांग रचनाओं में ठेठ आंचलिक शब्दों का प्रयोग किया है। इनमें अहीरवाटी व जाटोती दोनों बोलियों का पुट है। छन्द व अलंकार की दृष्टि से भी येे रचनाएं बेहतरीन है और इनमें गजब का काव्यानुशासन है। इन रचनाओं में मुहावरों का बहुत ही सुन्दर प्रयोग हुआ है।
मास्टर नेकीराम की सांग मण्डली में उनके सभी शिष्य व कलाकार गायन-वादन व अभिनय कला में सिद्धहस्त थे। इनमें रेवाड़ी के गांव भाड़ावास के नेतराम,खरखड़ी के हुक्म सिंह,बधराना के धर्मबीर, झज्जर बेरी के मातादीन,सोनीपत के रामसिंह,अलवर स्थित बढ़ली की ढ़ाणी के अमर सिंह,बादली के प्रकाश, दिल्ली के देशराज, अलवर के गांव जसाई के हरिसिंह, महेन्द्रगढ़ के गांव खेड़ी तलवाणा के मोहन व सरफू जैसे कुशल नृतक, जैतड़ावास के हरदयाल, बिहारीलाल, खम्बूराम,श्योलाल, दिल्ली के धनीराम,सहारणवास के जग्गन, झज्जर के गांव साल्हावास के बनवारी, धर्मपाल, नफेसिंह, डूम्मा के चन्दगी राम, महेन्द्रगढ़ के कांटीखेड़ी के बाबूलाल, रेवाड़ी के रामेश्वर, रामसिंह जैसे प्रतिभा सम्पन्न साजिन्दे, भाटोठा की ढाणी के हरफनमौला हास्य कलाकार हीरालाल , बड़ा सरजीत (खरकड़ी), छोटा सरजीत (खरकड़ी), श्री बनवारी, भगवाना आदि के नाम प्रमुख है। हीरालाल व प्रकाश तो इनकी सांग मण्डली में ऐसे थे जैसे शरीर में सांस।
मास्टर नेकीराम एक अच्छे सांग सम्राट व कवि ही नहीं अपितु एक उदारचेता, दानी, परदुखकातर व लोक कल्याण की भावना से परिपूर्ण सच्चे निष्पक्ष समाज सेवी थे। उन्होंने अपने सांगों के माध्यम से अनेक मन्दिर, कुआ, बावड़ी, धर्मशाला, गौशाला, स्कूल,तालाब आदि के निर्माण सहित अनेक जनहित कार्य करवाए। इसके अतिरिक्त उन्होंने अपने सांगों द्वारा गरीब कन्यायों के विवाह व अनेक बेसहारा लोगों की मदद करके एक मानवता की मिशाल कायम की। अपना सारा जीवन दबंग अस्मिता के साथ व्यतीत करने वाले मास्टर नेकीराम ने 60 वर्षों तक लगातार सांग मंचन करने का रिकार्ड अपने नाम करने के उपरान्त अपनी वृद्धावस्था के कारण सांग मण्डली की बागडोर अपने पुत्र मास्टर राजेन्द्र सिंह को सौंप दी। 10 जून 1996 को मास्टर नेकीराम का देहान्त हो गया।
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