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18:28, 28 अगस्त 2008 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= विहान / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>
:जागो, हे जीवन जागो !
:कूल बढ़े हैं नदियों के,
:सोये जागे सदियों के,
:मूक-व्यथाएँ खो जाएँ ;
::बंदी युग-यौवन जागो !
:उत्सर्ग भरे गानों से,
:प्राणों के बलिदानों से
:त्रस्त-मनुज के उद्धारक ;
::हे नवयुग के मन जागो !
:चंचल चपला के उर में,
:ज्वालागिरि के अंतर में,
:जो हलचल ; उसको लेकर ;
::जगती के कण-कण जागो !
: 1944