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18:33, 28 अगस्त 2008 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= विहान / महेन्द्र भटनागर
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<poem>
:तुम सहसा आ आलोक-शिखा-सी चमकीं !
:जब तम में जीवन डूब गया था सारा,
:सोया था दूर कहीं पर भाग्य-सितारा,
:तब तुम आश्वासन दे, विद्युत-सी दमकीं !
:सूखे तरुवर पतझर से प्रतिपल लड़कर
:सर्वस्व गवाँ मिटने वाले थे भू पर,
:तब तुम नव-बसंत-सी उर में आ धमकीं !
:जब पीड़ित अंतर ने आह भरी दुख की,
:जब सूख गयी थीं सारी लहरें सुख की,
:तब घन बनकर तुमने नीरसता कम की !
1945