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18:35, 28 अगस्त 2008 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= विहान / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>
:जब-जब मैंने सोचा मन में —
:क्या सार रखा है जीवन में ?
:है जब क़दम-क़दम पर फिसलन
:औ’ अपमान, व्यथाएँ, बंधन ;
::पर, मिटने की जब-जब ठानी
::मम वसुधा-सम प्राण न माने !
:इति का कहना क्या, जब अथ में
:दुख-ही-दुख है जीवन-पथ में,
:शूलों का अम्बार लगा है,
:कटुता का बाज़ार लगा है,
::पर, रुकने की जब-जब ठानी
::मम ध्रुव-सम ये प्राण न माने !
1945