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हिमाद्रि तुंग शृंग से / जयशंकर प्रसाद
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17:00, 15 जनवरी 2020
असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी
सपूत मातृभूमि के- रुको न शूर साहसी!
अराति सैन्य सिंधु में,
सुवाड़वाग्नि
सुवाडवाग्नि
से जलो,
प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो, बढ़े चलो!
</poem>
Kalpdeep
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