Changes

असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी
सपूत मातृभूमि के- रुको न शूर साहसी!
अराति सैन्य सिंधु में, सुवाड़वाग्नि सुवाडवाग्नि से जलो,
प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो, बढ़े चलो!
</poem>
49
edits