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17:37, 19 जनवरी 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अंकिता कुलश्रेष्ठ
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<poem>
चार दिन महबूब से नाराज़गी के बाद
रात भर बरसी मोहब्बत, तिश्नगी के बाद।
सर्द मौसम, सब्ज़ लम्हे, गुनगुना सा इश्क़
हो गईं धड़कन शराबी, दिल्लगी के बाद।
चख़ रहें हैं हम खुशी को स्वाद ले लेकर
खिल गई ज़ीनत हमारी सादगी के बाद।।
आपका आना, कि जैसे नूर का आना
हो गईं रोशन निगाहें, तीरगी के बाद।।
छा रही है ये ख़ुमारी, है सबब किसका
मिल गया साक़ी हमें आवारग़ी के बाद।
भूल बैठे हम खुदी को, है फ़िकर कैसी
मिल गया हमको ख़ुदा जब बंदगी के बाद।
गर चले जाएं जहां से हम युंही इक दिन
आपके दिल में रहेंगे जिंदगी के बाद।
</poem>