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नव-जीवन / महेन्द्र भटनागर

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गा रहा मधु-गान निर्झर !

आज सरि की हर लहर में नृत्य की गति-लय मनोहर,
सृष्टि की आभा नयी बन निखरती जाती निरन्तर,
:गा रहा मन गीत सुन्दर
:भावनाओं से हृदय भर
:कल्पनाओं से हृदय भर !

दे रहा वरदान कण-कण !
वेदना-दुख को मिटाकर स्वर्ण का संसार आया,
विश्व के दुर्बल हृदय में शक्ति का सागर समाया,
:गूँजता स्वर नभ-अवनि में
:आज आया मुक्त-जीवन
:आज भाया मुक्त-जीवन !
1944
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