Changes

बरसात / महेन्द्र भटनागर

896 bytes added, 18:39, 28 अगस्त 2008
New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह= विहान / महेन्द्र भटनागर }} <poem> स...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= विहान / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>

सांध्य का वातावरण धूमिल गहन तम में
छिप गया दिन भी शिशिर-सा शुष्क-मौसम में !

तप्त धरती पर उमड़कर छा रहे बादल
बह रहीं मोहक बयारें सिंधु से शीतल !

ताप में अब डूबती घड़ियाँ बिताओ मत
त्रास्त हो आकाश में आँखें लगाओ मत,

दूर दक्खिन से नयी बरसात आयी है
यह तभी बिजली गगन में चमचमायी है !
1945
Anonymous user