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|रचनाकररचनाकार=अभिषेक कुमार अम्बर
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तुझसे बस इतना ही चाहूँ।
अपने हर एक जन्म में
सिर्फ तुझको ही माँ में मैं पाऊं।
और न कुछ भी चाहूँ।
लाड़ प्यार से मुझको पाला
पिला पिला ममता का प्याला।
गिरा जब जब में मैं तूने संभाला
तुझसे है जीवन में उजाला।
माँ तेरे बलिदान को मेंमैं
शत् शत् शीश नवाऊँ।
और न कुछ भी चाहूँ।
सिर्फ यही एक बात है कहती।
क़र्ज़ बहुत है तेरा मुझपर
कैसे इसे चुकाऊं।चुकाऊँ।
और न कुछ भी चाहूँ।
ईश्वर की लगती है सूरत।
एक अगर जो साथ माँ दे तो
नहीं किसी की मुझे जरुरत।ज़रुरत।तेरे तेरी खातिर मेरी माँ में मैं तो
कुछ भी कर जाऊँ।
और न कुछ भी चाहूँ,
अपने हर एक जन्म में
सिर्फ तुझको ही माँ में पाऊं।मैं पाऊँ।
</poem>
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