1,444 bytes added,
18:49, 28 अगस्त 2008 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>
:बोले जीवन के मधुबन में
:कोयल का स्वर, कोयल का स्वर !
:लद जाएँ कुसुमों से डाली,
:अम्बर में फूट पड़े लाली,
:बह चले सुरभिमय मंद पवन,
:छा जाए जग में हरियाली,
::गा दे गीत खगों की टोली
::नीरव जीवन-सरिता तट पर !
:रजनी मौन भरे जीवन से,
:भ्रमरों के गुनगुन गुंजन से,
:जग कोलाहलमय हो जाए,
:छूट पड़े जीवन बंधन से,
::डोल उठे संसृति का अणु-अणु
::प्राणों में शक्ति नयी पाकर !
:जागे सोया मानव-जीवन,
:बदले जग का जीवन-दर्शन,
:निर्धनता, व्यथा मिटे सारी,
:हो नवल विश्व, नूतन जन-मन,
::मिट जाए सपनों की दुनिया,
::लहराए जागृति का सागर !
1949