नफ़रत के सिवा जिनको कुछ भी न नज़र आए,
क्या जान सकेंगे वो भला फ़िर बात महब्बत की।
जीने का सलीक़ा और अंदाज़ सिखाती है,
लेकिन न मिटा पाओगे ज़ात महब्बत की।
क्या ख़ूब हसीं थी शब, है याद हमें अब तक,वो पहले पहल अपनी मुलाक़ात महब्बत की। ख़ुशक़िस्मत ख़ुशबख़्त हो तुम 'अम्बर' जो रोग लगा ऐसा,
हर शख़्स नहीं पाता सौगात महब्बत की।
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