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{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर
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<poem>

:तुम मेरे जीवन-तरु के
:हो कोमल-कोमल किसलय !

:तुमसे मेरे यौवन की
:होती है पहचान प्रखर,
:तुमसे मुरझाए मुख का
:जाता है सौन्दर्य निखर,
::देते मेरे जीने का
::हिल-हिल मिल-मिल कर परिचय !

:आँधी-पानी में, माना
:मैं जड़ से हिल जाता हूँ,
:पर, प्रतिपल अंतरतम से
:गीत तुम्हारा गाता हूँ,
::सतत तुम्हारे ही बल पर
::लड़ता रहता बन निर्भय !
:1949
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