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<poem>
जल प्रतीक्षा दीप अविचल।।अविचल।
मौन हैं मेरे अधर औ'
असह-पीड़ा, ज्वार मन में,
है समय तम से घिरा यह
ढल चुका रवि है गगन में।
 पर मिटा दो यह हताशा
भर हृदय में आस निर्मल।
जल प्रतीक्षा दीप अविचल।।
प्रश्न-झंझावात मन में
मोम - सा गलता हुआ तन,
नेह की चाहत में तपकर
झुलस बैठा है शलभ-मन।
जल हृदय बन दीप-बाती
प्रेम का कर पंथ उज्ज्वल।
जल प्रतीक्षा दीप अविचल।।
प्रश्न - झंझावात मन में मोम-सा गलता हुआ तन,नेह-लपटों में झुलसकर पीर से व्याकुल शलभ-मन।  पर अभी भी श्वास जीवित मत करो विश्वास निर्बल। ये भयावह रात काली इक न इक दिन टलेग़ीआज ना तो कल टलेगी,
है अभी जो वेदना वह
स्वतः ही मजबूर होंगी। होगी।  पूर्ण करने यह तपस्य़ा तपस्याधीर रखकर, रहो निश्चल। जल प्रतीक्षा दीप अविचल।।
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